इश्क़ कितना है तुमसे ये बताना नहीं आता
इश्क़ तो है तुमसे
मगर जाताना नहीं आता
कितना पूछोगी तो क्या जवाब दूँ
ये बताना नहीं आता
हाँ सच तो है
मानगो अगर तो चाँद ला दूँ
कहे तो तुझको तेरी तश्वीर दिखा दूँ
कुछ आधे अधूरे सपनो से में
तेरे सारे ख्वाब सजा दूँ
तेरे आँखों के काजल के लिए
मेने अमावास् को है बुलाया
तूने पूछा था पायल हमसे कभी
तभी तारों को तेरे क़दमों में है सजाया
बालों में ठहरे रंग को
मैंने सोने से है सजाया
आँखों की रौनक न कभी घटे
तभी मोतियों को है उनमे बसाया
आंखें उनकी काली झील सी
या गहरा कोई समंदर जैसा
होंठ भी उनके गुलाब जैसे
या नरगिस फूलों के जैसा
हातों में मेहँदी है ऐसे रची
बादल में बिजली के जैसा
चूड़ियां उनकी कलाई में जैसे
फूलों के गुलदस्ते जैसा
तू मांगे अगर तो
कैसे तुझको मना करें
दिल तेरा जान तेरी
कैसे तुझसे ये ना बयां करें
अब ना पूछ हमसे की
इश्क़ कितना है ये बताना नहीं आता
मोहबत है फिर भी तुमसे जाताना नहीं आता
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
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