इश्क़ है तुमसे पर कहने से दिल ये डरे
रोके हुए इस इश्क़ को कैसे तुमको हम बयां करें
खुदगर्ज़ी भी देखो कैसा है मेरा इश्क़ भी है पर कहने से डरे
ना लफ़्ज़ों में ना ही शब्दों में जान नहीं कैसे इज़हार करें
तुमको जो सोचे रात सुबह हम फिर भी ख्यालों से तेरे दिल क्यों न भरे
वैसे तो हम प्यार नहीं मगर रिश्ता थोड़ा प्यार से है परे
बगैर तेरे कोई आये ज़िन्दगी में अगर मेरे
तो क्या होगा दिल का मेरा इस बात से दिल ये डरे
ना रहो तुम अगर तो ना फरक कुछ इतना पड़े
पर ये सच है अधूरापन रहेगा ज़िन्दगी में मेरे
कुछ यादों के ज़ख्म कब से सुख गए कुछ हैं थोड़े हरे
वैसे अभी जो आये हो तुम अगर फिर से लौट जाओगे बस इस ख्याल से भी डरें
मेरे हिस्से की खुसी भी तुमको दिया है हमने बिन मांगे तेरे
ना चाहो हमें अब इतना की तुमको भुला ना सकें फिर जितना कोई ना याद करे
की चलो आज कुछ वादें हम करें
के जब कभी वक़्त के पन्ने अगर पलट देखें
तो पाओ सिर्फ मीठे याद बिन आन्हें भरे
देखो कभी अगर हमको रस्ते पे रुक कुछ घडी बस मुस्काना
ना हो अगर इतना भी तो मुड़के थोड़ा देख लेना
कुछ तेरे यादें जो हैं हमारे कभी मिलो तो वापस कर देना
कुछ यादें हैं जो ये तुम्हारे जब मिलो कभी तो मांग लेना
जब कभी याद आये वो बीते कल या याद आये वो गुज़रे पल
थोड़ा हमें महफ़िल में बुला लेना
में तो ये सोचूं के तुमको ना सोचें फिर भी दिल ना सोचे तुमको रह सके
नाम तेरा जो गूंजे फ़िज़ों में बिन दिल धड़के ना रह सके
इतना भी याद ना आओ हमें की आँशु आँखों में ना छुपसके
होटों पे खुसी सजे तो मगर चहरे पे गम ना रह सके
एक बार कोई चेहरा आँखों में सजा है फिर कोई दूजे की ख्वाइश ना करें
ना हो चाहत किसी और चहरे की ना ही अब किसी और से प्यार करे
हात पकडे चल दो अगर कुछ कदम ज़िन्दगी से और कुछ और मांग ना करे
ना हो अगर तुम साथ मेरे तो यादों के सहारे आगे हम बढे
पर इतना तुम जान लो ऐ इश्क़
टुटा भी दिल जो ना बहे अश्क
माना तुमको प्यार किया बेवजा बेशुमार किया
फिर भी दिल तेरे प्यार से ना भरे
इश्क़ है तुमसे पर कहने से दिल ये डरे
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
No comments