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    परी

    Pari - Hindi Poem by Bibhuri Ranjan Panigrahi

    रंग उसका सुनहरा था 
    चाँद जैसा चेहरा था
    जुल्फों की क्या में बात करूँ 
    चहरे पे जैसे कोई पेहरा था 

    आँखों में उसके काजल थी सजी 
    होटों पे लाली खिली हुयी 
    गालों में उसके काला तिल है जैसे 
    नज़रों के हर एक से छुपी हुयी 

    वैसे तो वो कोई परी नहीं  
    ना ही कोई अप्सरा है 
    मगर मानो तो कोई हूर से वो कम नहीं 
    या गुलदस्ता कोई फूलों से भरा है 

    बातें उसकी है प्यारी 
    अंदाज़ भी उसकी बड़ी निराली 
    केहने को वो होंठ तो थे 
    पर आँखों से वो सब केहती थी  

    रंग भी उसके बालों का 
    काले जैसे घटाओं का 
    लहराते थे वो कुछ ऐसे के 
    हलके हवा के झोंके से 
    में थामे रखूं भी दिल को कितना 
    नहीं रुकता था चाहे लाख रोके से 

    माफ़ करो में भूल गया 
    उस काले तिल के बारें में 
    होंठ किनारे था वो छुपा 
    कैसे भुला था में उसके बारे में 

    एक हलके हरे रंग की साड़ी में 
    नील रंग की धड़ी थी 
    सुनहरे रंग के नकाशी उसमें 
    बड़े सुन्दर से सजी थी 
    माथे पे काली बिंदिया थी 
    कानो में बाली सजी हुई
    होटों पे हल्का गुलाबी रंग 
    रंगों की धुन में भरी हुई 

    पायल के झंकार से उसके 
    मेरा दिल जोरों से धड़कता था 
    सोचो कंगन के बारे में क्या कहूं 
    जिसे सुने खातिर में मरता था

    गोरे रंग में उसकी काली आंखें थी 
    जो मुझे बड़ा लुभाति थी 
    में देखता हर वक़्त उन आँखों को 
    जिनमें मेरे तश्वीर नजर आती थी

    खेर छोड़ो यारों कितना और लिखूं में 
    तारीफों की पहाड़ भी उसके आगे झुकती थी 
    यूँ न फ़िदा होते हम 
    कुछ तो बात थी यारों उसके चहरे की

    - बिभूति रंजन पाणिग्राही

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