परी
रंग उसका सुनहरा था
चाँद जैसा चेहरा था
जुल्फों की क्या में बात करूँ
चहरे पे जैसे कोई पेहरा था
आँखों में उसके काजल थी सजी
होटों पे लाली खिली हुयी
गालों में उसके काला तिल है जैसे
नज़रों के हर एक से छुपी हुयी
वैसे तो वो कोई परी नहीं
ना ही कोई अप्सरा है
मगर मानो तो कोई हूर से वो कम नहीं
या गुलदस्ता कोई फूलों से भरा है
बातें उसकी है प्यारी
अंदाज़ भी उसकी बड़ी निराली
केहने को वो होंठ तो थे
पर आँखों से वो सब केहती थी
रंग भी उसके बालों का
काले जैसे घटाओं का
लहराते थे वो कुछ ऐसे के
हलके हवा के झोंके से
में थामे रखूं भी दिल को कितना
नहीं रुकता था चाहे लाख रोके से
माफ़ करो में भूल गया
उस काले तिल के बारें में
होंठ किनारे था वो छुपा
कैसे भुला था में उसके बारे में
एक हलके हरे रंग की साड़ी में
नील रंग की धड़ी थी
सुनहरे रंग के नकाशी उसमें
बड़े सुन्दर से सजी थी
माथे पे काली बिंदिया थी
कानो में बाली सजी हुई
होटों पे हल्का गुलाबी रंग
रंगों की धुन में भरी हुई
पायल के झंकार से उसके
मेरा दिल जोरों से धड़कता था
सोचो कंगन के बारे में क्या कहूं
जिसे सुने खातिर में मरता था
गोरे रंग में उसकी काली आंखें थी
जो मुझे बड़ा लुभाति थी
में देखता हर वक़्त उन आँखों को
जिनमें मेरे तश्वीर नजर आती थी
खेर छोड़ो यारों कितना और लिखूं में
तारीफों की पहाड़ भी उसके आगे झुकती थी
यूँ न फ़िदा होते हम
कुछ तो बात थी यारों उसके चहरे की
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
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