में उसका हूँ मगर वो मेरा नहीं
एक मासूम सा चेहरा है कोई
हर दिन जिसे में निहारूं
तश्वीरे बनाये उसके हातोओं से अपने
घर दीवारों में सवारूँ
उस चाँद सुनहरे चहरे को
रात अँधेरी में सजा दूँ
कुछ तारे काजल बनाये
उसकी आँखों में लगा दूँ
गुलाब से मांगूं लाली थोड़ा में
थोड़ी उसकी खुसबू
लाली से होंठ रंगा दूँ उसके
बालों में खुसबू लगा दूँ
चहरे का नूर बनाये रखे खातिर
मैंने चांदिनी चाँद से उधारी ली
केश उसके घने काले रहे
बादलों की ये उदारी थी
आँखों को लेकर कोई सवाल हो अगर
बेझिझक यारों पूछो तुम
पर क्या जवाब दूँ उन आँखों के बारे में
जिसे देखे एक दफा
फिर कभी नींद से ना सोये हम
मनो तो आंखें काली झील थी
या काली बादल घटाओं सा
या हो काली कोयल जैसी
या घनी रात अमावस का
नूर - ए - चेहरा देखो तुम
तो लगे की कुछ ऐसा है
रात अँधेरा हिरा हो कोई
इतना सुनहरा उसका चेहरा है
अब तारीफ करूँ उस हिरे की
या कहो उस चाँद सुनहरे की
लिखूं भी अगर रात दिन बैठे में
तबभी शब्दों का मतलब कुछ रहे नहीं
उस मासूम से चहरे पर क्या लिखूं मेँ
जो मेरा होकर भी मेरा नहीं
में उसका तो हूँ मगर यारों
फ़िलहाल अभी तो वो मेरा नहीं
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
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