ऐ ज़िन्दगी तुझसे खुस हूँ में
कुछ अधूरे ख्वाब लिए कबसे बैठा में था
कुछ ना मिले चाहत से खफा में था
पर आज मुझे महसूस हुआ
उस खवाब को तराशते हैं लोग जो तूने मुझे है दिया
तुझसे नाराज़गी भी थी की राह में मेरे कोई हमसफ़र न था
तुझसे शिकायतें भी की कोइ हमराही न दिया
पर बढ़ते कदमों के साथ जिन दोस्तों मुलकात होती गयी
फिर हमसफ़र के चाहत का कोई आश ना रहा
माना तुझसे कई दफा रूठा में
शिकायत भरे तानों से तेरे टुटा में
सवारे मुझको तूने फिर चलना सिख्या
कभी जब भूले भटके गिरा रासतो में
चले तेरे संग राह में मिले कई
कुछ पहचान बने
कुछ बने रहे अजनबी
कुछ आज भी रहे साथ हमारे
कुछ खो गए भीड़ तन्हाई में कहीं
ऐ ज़िन्दगी अब तुझसे मोहबत होने लगी है
अब तेरी चाहत सी होने लगी है
चाहे दर्द दे रूश्वाई दे
ढाये चाहे हमपे कितने भी सितम
अधूरा ना रहूँगा बिन तेरे कहीं
तुझसे जो एक अंश जुडी है
ऐ ज़िन्दगी अब दे सके ना अगर प्यार तो ना रहेगी कोई बेरुखी
खुद से इश्क़ करना जो सीखाया है तूने किसी और से अब न चाहत रहेगी कभी
बस कहना चाहूँ इतना आया जो तेरे दर भूले भटके कभी
पकडे हात फिर चलना मेरे संग दो कदम चाहे में रहूं या नहीं
अब ना चाहत कोई
ऐ ज़िन्दगी तुझसे खुस हूँ में
चाहे तू मेरे संग रहे या नहीं
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
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