में क्या लिखूं तेरे तारीफ में
मुझे याद है तेरे वो बचकानी हरकतें
तेरे वो चहरे पे बनावटी गुस्सा
होटों पे वो मुस्कुराहटें
में जब कभी बैठा शांत नदी तार के किनारे
सोचे उन्हें मुस्कुराते हुए
लिख गए कुछ ग़ज़ल कुछ शायरी कुछ कबिता
आज हात हमारे
आँखों में काजल सजाये जब कभी देखे तू मुझे
में सोचूं की बादलों में इतनी कालिक क्यों नहीं
जितने तेरे आँखों में है सजे
तेरे होटों की लाली के बारे में जब पूछा मैंने गुलाब से
गुलाब भी शर्माए कहे मुझे
गुलाबी रंग जो भाए है आज तुम्हे
वो उधारी है आपसे
नदी की तरंगों से पूछा तेरे मधुर सुर की तालुकात है किस्से
वो कहे बड़े प्यार से
कुछ बोल जो आज मीठे हैं वो मिले जो है आपसे
तेरे आँखों से टपकते अश्क को
देखा जब काली बदरिया ने
खुद को न रोक पाए वो
बरष गया और भीग गया खुद तन मन में
उन पायलों की झंकार को
जब सुना इन फ़िज़ाओं ने
तब फिरसे बर्षा बादल ये जो
भिगोये सबको प्यार में
तेरे छूने से मुझे जलते थे ये गुलाब
तितलियाँ सिमट बैठ जाती
बादल को इतना गुसा आया
बारिश को बना दिया उसने ख्वाब
फूलों से महक कहीं आज हट गयी
जब जुल्फें तेरी झटक गयी
जब सवारा तूने अपने बालों को
तितलियाँ उन्हें फूल समझे खुद आके बैठ गयी
हातों में मेहँदी जब रचाई थी तूने
रात कहीं हट गया और दिन आया था खिलने
दिन ने समझा सूरज आया है आज
और चाँद लगा था हटने
धोके में उन्होंने अपना वक़्त बदल दिया
दिन रात में और रात दिन में लगा था बदलने
में तारीफों में क्या लिखूं तेरे
वक़्त और सब्द नहीं है आज पास मेरे
सिर्फ तेरे नाम से जो ठंडक है मिली
जो मिला सुकून इस दिल को
वो कहीं और कभी फिर न मिले
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
ब्रह्मपुर, गंजाम
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