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    काम

    Kam - Hindi poem by Rajesh Rath on Shubhapallaba Hindi Portal - काम

    नदी का काम कितना अलग है पेड़के काम से
    पंगडडी का काम कितना अलग है खेत के काम से 
    इनके साथ साथ किसान और नवे रखने वाले भी
    कितने लीन रहते है अपने अपने काम से ।

    झरने ओर तालाब भी डूबे रहते हैं अपनी काम में 
    जल संचार की महिमा गूंजती रहती है उनके मन में 
    सूखी घासों के उजास से घोंसला बुन्नते है बया
    मनुष्य के भरोसे तो धुएं से जलता है आसमा
    बारिश करती  है महीना धुलाई रखती है नया ।

    सुंदर - सुंदर कामों के कैसी सुंदर बनावट है काये नात में
    चांद के नीचे उड़ती पंछियों को देख ते सोचते रहता हूं अक्सर रात में 
    सोच में डूबता हूं कभी कभी नींद भी उवाट जाती है 
    चिटियों कि सेना सपने को बिखर देती है 
    फिर्भी नई प्रेरणा की ओस मन में जगा देती है । 

    - राजेश रथ

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