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    गुजरा पल और हम

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    कभी कभी जिंदेगी कुछ ऐसा कर देती है
    ना जाने कहां सुरु की थी भूल जाते हैं ।

    आज कल सब अपना बनने लगे हैं
    कल कहां थे जब हम भीग रहे थे ।

    कुछ करने का मन है 
    कुछ अपसोस करने का दिल नहीं करता 
    पर ये कम्बक्त गुजरा समय पीछा ही नहीं छोड़ता ।

    आगे बढ़े भी तो क्या कर लेंगे
    पछतावा के बोल अभी भी कानों में सोर करता है ।

    इस सोर सै क्या आगे बढ़ नै की ताकत मिलेगी
    या फिर खो जाने क्या डर पैरों को तोड देगी ।

    एक ही जीवन मिला था पर सायद संभाल नहीं पाए
    जमीन नीचे जरूर है पर जोड़ नहीं पाए ।

    है मेरा खुदा कुछ रहम तो कर लेता
    भूल गया तू तेरे दर्द की हम करीबी हैं ।

    आगे बढ़ो भूल जाओ सब कहना आसान है
    पर बढ़ ने पे रास्ते भर कांटों को छोड़ना नहीं भूले ।

    चलना है और यही अब होना है
    कुछ ना हो पर खुस होना ही है ।

    कभी कभी जिंदेगी कुछ ऐसा कर देती है
    ना जाने कहां सुरु की थी भूल जाते हैं ।


    - पी. पूरबी महांती

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