Thursday, January 9.

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चाय की टपरी

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उस दिन कोरोना के वजह से छुट्टी की घोषणा कर दी गई थी ।

बहुत सारे बच्चे घर जा भी चुके थे और कई जाने की तयारी में व्यस्त थे। पूरे कॉलेज में भागदड़ मच गई थी । ऐसे में हम दोनों हमारे विभाग का भवन के पीछे वाली चाय की टपरी पे मिले । मुझे चाय इतनी पसंद नहीं। एक चाय और एक कफ़ी का अर्डर देके हम लोग इंतिज़ार किए।

उसने बोला - " पता नहीं ये लॉकडाउन कब खत्म होगा और हम फिर कब मिलेंगे ।" 

मैं - Don't worry... फ़ोन पे बात तो करेंगे ही ।
वो - घर पे इतनी बात नहीं हो पाएगी ( दुखी शक्ल बनाकर)

मैं उसका हाथ पकड़ने वाली थी इतने में आवाज आयी दीदी आपका अर्डर । हम दोनों चाय और कफ़ी लिए टपरी के पीछे रखी कुर्सी में बैठकर चुस्कि लेने लगे । कोई और नहीं था वहां ।

थोड़ी देर बाद उसने बोला "मुझे कफ़ी टेस्ट करनी है।" मैंने अपना कप उसके तरफ बढ़ाया ।

वो - यहां से नहीं (मेरे होठों को छुके) यहां से पीना है ।

फिर मेरी आंखे बंद थी और मुझे चाय का स्वाद पसंद आया ।

शिबानी आचार्य

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