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    माँ


    मेरे होंठो की हसि
    दर्द में भी खुशी तुम्हें दे
    मेरे पैरो की चोट
    हसि तुम्हारी होंठो की छीनले ।

    मेरे आँखो की आंसू
    पलकें तुम्हारे भिगाएँ
    मेरे सुकून की नींद
    सपने तुम्हारे चुराए ।

    कडकति धूप में
    मेरी परछाई हो तुम
    में तो चाँद हूँ
    मुझे उजाला करती हो तुम ।

    तुम तो मेरे बै रस्ता हो
    जाहाँ से शुरू हुई मेरे सफर
    जिंदेगी की हर एक मोड में
    तुम मेरे हमसफ़र हो ।

    प्यार तो तुम मुझे
    खुद से भी ज्यादा करती हो
    तुम्हारे हर् खुशी का वजहैं
    तुम मुझे ही चुनती हो ।

    मेरे हर छोटी सी छोटी पल को
    तुमने येसे सम्भाला हुआ है
    जैसे मधुमक्खी के छत्ते पे
    शहद रखा हुआ है ।

    क्या करू उस खुशी के पल का
    जिस पल में तुम नहीं
    जहाँ पे खुबसुरत समा हो
    और तुम्हारे साथ में नहीं ।

    मुझे दुनिया दिखाने के लिए
    नौ महीने दर्द तुमने अपनाया
    तुम तो मेरे कलम का स्याही हो
    जिसे मे अपनी कहानी में दर्शाया ।

    - सुनीता पटेल

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