गुलाब जामुन
लाकडाउन का तीसरा रविवार, सुबह नौ बजकर बिस मिनट । धर्मपत्नी मीनाक्षी देवी का बर्तन साफ करनेका धड़-धाड़ आवाज़ से अतिस्ठ होकर उठगये रमेश बाबू । "सुबह सुबह ये क्या तमाशा लगा रखा है? सोने भी नहीं दोगी क्या?" फिर रसोई घरसे तीर की गति से प्रत्युत्तर आया"हाँ हाँ और नहीं तो क्या? में तो यहाँ सर्कस कर रही हूँ । तुम रातभर वो नेटफ्लिक्स, यूट्यूब चलाते रहो और सुबह देर से उठो और तुम्हें में सोने नहीं देती? बड़े अजीब आदमी हो तुम !"
हाँ हाँ ! छोडो वो सब । कल रात से पेट में चूहे दौड़ रहे हैं । तुम सो गई थी, तो मेंने तुम्हे जगाया नहीं, आधी रात को पुरा किचन ढूंढ डाला कुछ ना मिला, पूरा फ्रिज खाली, मुश्किल से वो नमकीन मिला तो खा कर सो गया । बहत भूक लग रही ह, कुछ लाओ तो ।
"और हाँ वो रोज रोज का सुखा पोहा, मैगी या फिर रात की बची हुई रोटी और चाय मत ले आना । कुछ तो नया बनाओ । कल व्हाट्सप्पपे देख तो रहे थे, कैसे मिश्रा जी की वाइफ मोमोस बना कर फोटो डाली थी, और वो त्रिपाठी की लड़की पानीपूरी बना रही थी, कोई छोले भटुरे तो कोई पैन केक, और में यहाँ गाय की तरह रोज वही रात का बचा कुचा खा रहा हूँ । इससे अच्छा तो में ऑफिस जा रहा था, कुछ न मिले तो वो गोविन्दम दुकान में गरम गरम समोसा और जलेबी तो खाने को मिलता था । पता नहीं कौनसे जनम का पाप जो तुमसे शादी हुई, शादी के बादसे कुछ अच्छा खाने को जो न मिला ।"
वहां से अभिमान भरे कंठसे आवाज़ आई में क्या करूँ? घरपे छोटी और पापा की लाड़ली थी तो मुझे किचन तक जाने नहीं देते थे, बी.ए ख़त्म ही नहीं हुआ था तुम टपक पड़े जिंदगी में, तुम्हे तो पता था की मुझे रसोई नहीं आति थी शादी से पहले, फिर भी ताना मारते रहते हो ।
ठीक है ! ठीक है ! छोडो वो सब! भूक लग रही है, लाओ जल्दी जो भी है, इतना बोलते हुए रमेश बाबू डाइनिंग टेबल पे रखा हुआ गिलास को तबला मान कर टाइम पास करने लगे और बार बार घडी देख क अधीर हो रहे थे ।
"और कितना टाइम लगेगा? जो है जल्दी लाओ"
"हाँ हाँ लाती हूँ, बाबा !"
इतनेमे अपनी शादी की पहली साल गिरह पर रमेश बाबूसे उपहार के तौर पर मिली हुई एक लाल बनारसी साड़ी पहनते हुए, शकलपे एक शर्मिली मुस्कान और हाथमें एक बडीसी थाली लेते हुई आई मीनाक्षी देवी ।
खीर, पूरी, छोले और घरपे बना हुआ गुलाब जामुन से भरी हुई थाली को रखते हुए मीनाक्षी देवी रमेश बाबू के आँखों में आंखे डाल कर बोले, "हैप्पी बर्थडे डार्लिंग ! यूट्यूब से सिख सिख कर सुबह पांच बजेसे लगी हुई हूँ ।"
रमेश बाबू हक्के बक्के रह गये, एक अनोखी अद्भुतसी मुस्कान उनके चेहरे पे खिलगयी । वो कुछ कहने से पहले दूरदर्शन पे चल रहे कार्यक्रम चित्रहार में रॉकी फिल्म का एक गाना सन्नाटे को चिरता हुआ गूंजने लगा"क्या यही प्यार है? हाँ हाँ यही प्यार ह... दिल तेरे बिन..."
हालाकि खीर, पूरी, छोले सब बढ़िया बने थे, पर गुलाब जामुन क अंदर वाला हिस्सा थोड़ा कच्चा था, पर रमेश बाबू को पता भी नहीं चला !
क्या यही प्यार है???
आशा करता हूँ आपको ये छोटीसी कहानी अच्छी लगी होगी, कैसे लगा आप जरूर बताना...
- उमाकांत दाश
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