खिलौना
चार लोग एक सहर में सीरियल बम ब्लास्ट करने के लिए प्लानिंग कर रहे है। उन्होंने चार बक्स तैयार किये और कौन कौन सी जगह पे ब्लास्ट करेंगे उसके बारे में पूरा बातचीत करलिया। अब वो अपने अपने बंधूक ले के चल पड़े....
बस स्टैंड पे बस खड़ी है। अपने अंदाज में वो हॉर्न बजाके निकल ने के लिए सूचना देने लगी। ड्राइवर रुक रुक के हॉर्न बजाना चालू किया, ता की बाकी लोग भी बस में चढ़ जाए। बस धीरे धीरे पूरा हो रहा था। सारे यात्री अपने अपने सीट पे बैठ चुके थे। लास्ट रो के सीट को छोड़ के बाकी सब भर चुके थे। लास्ट रो के यात्री अभीतक नहीं पहुंचे है। कंडक्टर बार बार भीतर बाहर हो रहा था और ड्राइवर को और थोड़ी देर इन्तेजार कर ने के लिए बोल रहा था।
कंडक्टर -- और दो चार बार हॉर्न बजा, वो लोग अभी तक नहीं आये है...
ड्राइवर -- लेट हो रहा है। वो लोग ना आये तो ना सही। बस पांच मिनिट और, फिर निकल जाएंगे।
कंडक्टर -- ठीकहै ठीक है...
बस जयपुर से अहमदाबाद जा रहा है, आज सुक्रबार है। सनिबार और राबिबार ऐसे भी छुट्टी है। सोमबार और मंगल बार दो दिन छुट्टी ले लिया तो बुधबार को अगस्त 15। एक साथ पांच दिन की छुट्टी। गुरुबार और सुक्रबार और दो दिन लिया तो फिर से दो दिन । कुल मिलाकर नो दिन की छुट्टी। इसीलिए बस में आज यात्री फूल थे। कोई आपने घर जा रहाथा तो कोई घूमने। और तो और रास्ते पे भी कोई उत्तर ने वाला नहीं था। सब के सब direct पैसेंजर। अबतो बस एक बार खाने के लिए रुकेगी फिर डायरेक्ट अहमदाबाद।
ड्राइवर चीड़ रहा था की बस स्टैंड से गाड़ी निकाल नही पा रहा है, ऊपर से दो जन आके उसको टाइम पे गाड़ी निकाल ने के लिए बोल के जा चुके थे।
ड्राइवर अभी जोर जोर से हॉर्न बजाने लगा। उसिवक्त चार लोग आ पहुंचे। ऑनलाइन टिकट दिखाकर अंदर जाने लगे। पर दो जन का टिकट था। तो कंडक्टर बाकी दो जन का टिकट मागने लगा। ये चार लोग किसी बैण्ड पार्टी का लग रहेथे। हाथ मे गिटार जैसा कुछ पकडे हुएथे। ढीला बाला पैंट और सर्ट पेहेन के किसी बैण्ड पार्टी या फिर जोकर जैसे लग रहेथे। ऐसे लग रहेथे की कहीं कुछ बड़ा सा शो करने जा रहें है।
चारो एक साथ अभी पीछे बाला पूरा छे सीट का पैसा दे के कंडक्टर को बोला कि लास्ट रो पे और कोई बैठना नही चाहिए। हमने पूरा सीट ले लिया है। कंडक्टर भी खुश। आज भीड़ के कारण वो सीट का भाड़ा बढ़ा दिया था। उसको भी दो सीट की अलग से पैसे मिलगये।
बाकी पैसेंजर तो पहले से आ चुके थे, तो कंडक्टर ने ड्राइवर को गाड़ी निकालने के लिए बोल दिया। ड्राइवर गाड़ी निकाल रहाथा और उतने में कंडक्टर सबका टिकेट चेक किया। पैसेंजर के बीच मे एक ऐसा फैमिली था जिसमे, ममी, पापा और एक तीन/चार साल का बच्चा था। जो गाड़ी के ऊपर चढ़ते ही सो गया था। तीनो को एक साथ सीट नहीं मिला, इसीलिए पापा ने जा कर ड्राइवर के पास केबिन में बैठा। कंडक्टर टिकेट चेक कर के केबिन में जा के बैठ गया।
गाड़ी चलने लगा। ड्राइवर एक एक करके सब लाइट ऑफ करने लगा। सब लोग धीरे धीरे सोने लगे। बातचीत कम होता गया। एक ब्लू कलर का धीमा सा लाइट पूरा बस में लग रहा था बाकी सब बंद हो चुका था।
दो घंटे बाद, बाराह बजे के आस पास ड्राइवर एक ढाबे के सामने गाड़ी रोका। बस से सब पैसेंजर एक एक करके उत्तर ने लगे। कोई चाय नास्ता करने के लिए उतरा तो कोई एक या दो नंबर के लिए। कोई पानी भरने के लिए नीचे गया तो कोई सिगारेट पीने के लोए। सब अपने अपने काम मे लग गए।
छोटा सा बच्चा जो साम से सो रहाथा, वो अब जग गया और रोने लगा। उसके पापा उसको बाहर लेके थोड़ा सा घुमाया और बापस ले आये। उस के पापा केबिन में बैठे थे और बस के अंदर कोई पैसेंजर भी नहीं था। जो एक दो बैठे थे सब अपनी अपनी सीट पे बैठे हुएथे। तो इसको खेलने के लिए बहत बड़ी जगाह मिल गयी। तो उसने बस के अंदर दौड़ना खेलना चालू करदिया। कभी ममी के पास आतथा तो कभी पापा के पास भाग के जा रहा था। कोई कोई पैसेंजर बीच बीच मे अंदर आते थे तो कोई बाहर जा रहाथा। फिर भी वो अपने खेलने में मस्त था।
खेलते खेलते उसने देखा कि लास्ट रो पे बैठे एक दाढ़ीवाला अंकल के पेण्ट और शर्ट के बीच मे एक बंधूक जैसा दिख रहा है। उस के पास भी ऐसा बंधूक है घरपे। पर उसे यहां खेलना है बंधुक के साथ, तो वो रोने लगा और बंधूक के लिए जिद कर ने लगा। ममी बोली कि पापा के पास जाओ.....
ड्राइवर और कंडक्टर अपना चाय नास्ता करके आ गए थे। कुछ लोग अभी भी आना बाकी था तो ड्राइवर ने अपने सीट पे बेठ के एक सिगारेट जलाया।
इतने में बच्चा अपने पापा के पास जाने लगा। ड्राइवर के केबिन के पास पहुंच के वो पापा को बोलने लगा कि , "पापा, पापा, मुझेना, मुझेना वो बंधूक बाला खिलौना चाहिए"। उसके पापा को गुस्सा आ गया। बैठ बेठ के वो बोर हो गया था। ऊपर से ये...तो उसके पापा उसको डांट ने लगा,"चुप, बेठ यहांपे। रातमे, ये बस के अंदर इसको वो वाला बंधूक चाहिए। यहां बंधूक कहाँसे आएगा? "। बच्चा रोने लगा। रो रो के वो पीछे की तरफ हाथ दिखाके बोला,"बंधूक वो दाढ़ी वाले अंकल के पास है"।
ड्राइवर अपने सीट पे बौठे इन लोगोकी बात सुन रहा था। उसको कुछ याद आ गया। बच्चा तो झूट नहीं बोलेगा। फिर वो दाढ़ी वाला अंकल, जो चारलोग आयेथे। उनको देख के ही ऐसा लग रहाथा की वो कर कुछ और रहेहै और दिखा कुछ और रहेहै। जब वो लोग आयेथे एक ने अपने कमर पे कुछ छुपाने की कोसिस कर रहाथा। इतना याद आते ही ड्राइवर को कुछ डाउट हिने लगा। उसने कंडक्टर को बुलाके उसके कान में कुछ कहा।
कंडक्टर यात्री के संख्या गिन गिन के पीछे गया और जो देखा उस के होश उड़ गए। चारो लोग सो रहेथे। एक कि कमर से सर्ट थोड़ा ऊपर हो गयाथा और कमर पे रखे बंधूक दिख रहाथा। परंतु कम लाइट के कारण उतना अच्छे से ना देखो तो वो ना दिखे। वो थर थर कांपते हुए ड्राइवर के पास आके ड्राइवर को आँखों आंखों में इसरा किया।
ड्राइवर और कंडक्टर के तो होस उड़ने लगे। क्या करना चाहिए ये उन लोगो को समझ मे नहीं आ रहाथा। अभी अगर इन लोगोको पकड़ ने जाएं तो कुछ भी हो सकता है। पास में कोई थाना भी नहीं है। पोलिस थाना यहां से कमसे कम दस किलोमीटर होगा। कंडक्टर ड्राइवर को बोला, "बस को यहीं छोड़, चल भाग जाते है। आपना जान बचा तो लाखों पाए"। पर ड्राइवर को अच्छा नहीं लग रहाथा। उसने गाड़ी स्टार्ट किया और सबको अंदर बिठाने के लिए बोला।
ये लोग चाहे तो अभी भी उन लोगो को काबू कर सकते है पर उनके पास जो बक्सा है, उसके अंदर कुछ भी हो सकता है तो बेहतर ये है कि पोलिस थाना तक गाड़ी को ले लिया जाए और उनको भनक लगने से पहले पोलिस को सब कुछ बताया जाए।
ड्राइवर चाहे तो अभी भी भाग सकता है, पर इतने लोगो की जान जोखम में डाल के भागने को उसका मन नहीं किया। कितने लोग उसपे भरोसा करते है।चाहे सही सलामत पहुंच ने के बाद कोई एक भी उसको धन्यबाद ना बोले पर जबतक बस में बैठे रहते है तबतक उसके ऊपर भरोसा तो करते है। कोई भी गलती की बजेसे कुछ हो जाए तो पहले मार ड्राइवर के ऊपर पड़ता है, परंतु हर दिन यही लोग भरोसा रख के बस, ट्रेन, टैक्सी में ट्रेवल तो करते है। अब समय ये आयहे की ड्राइवर के ऊपर लोगोका भरोसा और बढ़ेगा। बरना तो बिस्वास ही उठ जाएगा।
उसने बस चलाने में ध्यान दिया और एक ही मकसद था कि पोलिस थाना तक पहुंचे। करीबन पांच किलोमीटर आ चुकता, उसको एक पोलिस पेट्रोलिंग की गाड़ी दिखने लगा। वो दूसरे तरफ रे बस की ओर आ रहाथा। बस चलाते चलाते उसने अपनी लाल कलर की गमछा गर्दन से खींच के हात में पकड़ा और खिड़की से बाहर निकाल के पोलिस गाड़ी को दिखाने लगा। और ये क्या, पोलिस गाड़ी का ड्राइवर देखा ही नहीं और क्रस करके जाने लगा। धेत...ये भी गया। और भी चार किलोमीटर बाकी था और उसको किसी भी हालात में पोलिस थाना तक गाड़ी को पहुंचाना था।
उसने गाड़ी चलाते चलाते अपनी पसीना पोछ रहाथा। ये बात वो वहां बैठे किसीको भी नहीं बता सकता था। क्यों कि किसीको भी पता चला तो बस की अंदर खलबली मच सकता था और उन लोगो को भी पता चल सकता था।
कुछ समय निकल रहा था। पोलिस स्टेसन पास आ रहाथा। अभी करीबन पचास मीटर दूरी पे वो गाड़ी रोक दिया और कंडक्टर को बोला कि," एक एक कर के सबको बाहर निकाल, ये बोल दे कि गाड़ी पंचर हो गया है। याद रखना, पीछे बैठे उन चारों को कुछ पता नहीं चलनी चाहिए" । ये बोल के वो पोलिस थाना की तरफ दौड़ना चालू किया। कंडक्टर थर थर कांपते हुए एक एक जन को बाहर लाने लगा।
दौड़ दौड़ के ड्राइवर थाने पे पहुंचा और थानेदार को सब बात बताया। लेकिन थाने पे उसको छोड़ के बाकी कोई नहीं था। सब पेट्रोलिंग में गए हुए थे। थानेदार ने अपनी वाकिटकी से सबके साथ कॉन्टैक्ट करने ही वाला था कि पेट्रोलिंग की गाड़ी आ पहुंचा। जाते जाते पोलिस गाड़ी की ड्राइवर लाल कपड़ा मिरर पे देख लिया था और ये भी देखा था कि बस ड्राइवर की हात हिल रहा है। तो उसको कुछ अनबन सी लगी तो उसने बस का पीछा करते हुए यहां आ पहुंचा।
पोलिस सब कुछ जान चुके थे। उनके पास और भी हतियार हो सकते है ये सोच के सब तैयार हो गए। बस तक पहुंच के पहले सबको बाहर निकालते हुए उन चार लोगों के ऊपर टूट पड़े। चारो ने अपनी जान बचाने के लिए फायरिंग चालू किया तो एक पोलिस ऑफिसर के बाएं हात में एक गोली लगी पर सबने मिलके दो को मार गिराया और दो पकड़े गए। उनसे बक्से में भरे हुए आरडीएक्स और बम पकड़े गए, जो ये लोग सीरियल बम ब्लास्ट करने के लिए अहमदाबाद ले के जा रहे थे।
अगलेदिन सुबह, हर कोई न्यूज पेपर और चैनल में इसके बारे में बड़े चर्चा हो रहाथा और ड्राइवर को सब शाबासी दे रहेथे...
चार दिन बाद अगस्त पन्दर के दिन ड्राइवर को पचास के ऊपर लोगो की जान बचाने के लिए और सीरियल बम ब्लास्ट को रोकने केलिए दिखाया हुआ साहस के लिए राज्य सरकार की तरफ से दस लाख रुपया इनाम में मिला। स्टेज के उपर उसने दस लाख से चार लाख उस बच्चे को देनेका वादा किया।
स्टेज के नीचे अपनी पापा के कंधे के ऊपर बैठा उस बच्चे ने परेड में खड़े पोलिस भाईओ के बंधूक देख के अभी भी उसके साथ खेलने के लिए जिद कर रहाथा।
उसकेलिए तो हर कोई बंधूक खिलौना ही था....
--समाप्त--
सच मे, आजतक किसीने भी कभी भी सुरखित पहुंचे ने बाद ये ड्राइवर को धन्यबाद दिया है? ना....
चलो अब ट्रेवल करने के बाद सुरखीत पहुंचाने के लिए उनको धन्यबाद देते है....
सुबल महापात्र
खलारी, अनुगुल, ओडिशा
9376012500
subal.mohapatra@gmail.com
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