ए दोस्त अलबिदा केहेना था
बाहर उस दिन कोई नया सबेरा था
चारों दिशा ख़ुशहाली तन मैं ऊर्जा का संचार था
अच्छे से जाना उसने तो पता चला
कोई नया समय का प्रारम्भ था..
नजदीकियां बढ़ी दोस्ती हुई
दिल मैं सपनों का दुनिया सजने लगा था
ख़ुशी की बारिस आई ग़मों का तूफान भी आया
पर सूरज अब कुछ ढलने लगा था
कोई खामोशी बिखरी हुई थी चारों तरफ
मौसम ये पतझड़ का था
आँखें अब नम हो चली थी
क्योंकि दोस्त अब अलविदा कहना था
भागने लगा किस्मत से छुप ने लगा कहीं डर से
शाम बीती सुबह हुई पर ये तो वो दोस्त न था
भगा पश्चिम की और गिरा घुटनों पर जोर
सहम सहम अब रोने लगा था
उसे अलविदा कहना था उसे अलविदा कहना था
कुछ गम अब अकेले सहना था
ए दोस्त अलविदा कहना था…
- मानस रंजन दाश
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