ख्वाब जो टूट गये
कुछ सुनहरे ख्वाबों को,
जब मैंने पलकों में संजोकर रखना चाहा,
आंखों से आंसू ऐसे निकले कि,
सारे ख्वाब आंसू के साथ बह गये ।
उन ख़्वाबों को फिर मैंने,
अपनी मुट्ठी में बंद करके रखना चाहा,
पर ना जाने कब रेत की तरह,
मुट्ठी से सारे ख्वाब फिसल गये ।
फिर उन खुबसूरत ख्वाबों को,
दिल के किसी कोने में, छुपाकर रखना चाहा,
पर दिल तो मेरा दर्द से इतना बेहाल था,
उसने मेरे ख्वाबों को देख कर,
अनदेखा कर दिया ।
- कल्याणी नन्द
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