सायद कोई भूल हूँ में
सायद कोई भूल हूँ में
या कोई गलती ही सही
कुछ तो बात होगी मुझमें
वरना यूँ ना हर कोई ढूंढे गलती मुझमें कहीं
किसी ने ढूंढा मुझमें पैसे की खुसबू
किसी ने सोहरत का रुतबा
किसी ने सोचा इसे मंजिल बना लूँ
हिरा जो सीने में छुपा था
पर कोई ना खोज सका
खुली आँखों से ढूंढो मुझे तो एक खुली किताब कोई
समझना है तो बंद आँखों से पढ़ो
खुली आँखों में मैं कुछ अनसुलझे सवाल कई
लोग केहते हैं में अनजान हूँ
कोई नादाँ हूँ
कुछ अजनबी जैसा
कोई पागल तूफ़ान हूँ
कुछ लहरों की तरह
ना अंत कोई ना कोई आरम्भ
ना किसीका भबिस्य
ना किसीका वर्तमान हूँ
फिर बी लोग ना जाने क्यों ढूंढे मुझमें कमी
जबकि पूर्ण रूप से मैं
एक सागर किनारा हूँ
सूरज की पहली किरण जैसा
तेज नहीं पर मीठी उश्णता हूँ
उस पूर्ण चंद्र की अलोक जैसी
सीतल पवित्र और मन मुग्ध हूँ
हाँ सत्य है की में सम्पूर्ण पूर्ण नहीं
परन्तु अर्धक सत्य भी नहीं
जो अर्ध मिथ्या के सामान कहीं
मैं वो सब्द कोई जो सब्द कोष में मिला नहीं
में वो वक़्त कोई जो ढूंढे से भी मिला नहीं
हाँ मैं आज पराजित तो हुआ
पर मतलब ये की मैंने विजय देखा नहीं
अटल रहा
अविचल रहा
कर्म को पूजे धर्म को छोड़ा नहीं
अडिग रहा
अचल रहा
पर कभी मैं चुप बैठा नहीं
हस्त मेरे कर्म योगी हैं
बुद्धि मेरी धर्म सहित
पद मेरे सत्य पथचारि
सीस झुके नम्र सहित
पूजित मेरा हर कोई
जिससे सीखूं मैं बिद्या कोई
हर किसी को नमन कर
सीखा मैंने ज्यादा नहीं पर कुछ सही
आदरणीय रहा मैं हर किसी का
हर किसीने ढूंढा मुझे हर कहीं
जो भली भांति जाने मुझको
वो हर क्षयन पूजे
हर वक़्त सोचे
हर प्रहर खोजे
हर कहीं
पर फिर भी क्यों मैं जानू ना
लोग मुझ मैं कमी ढूंढ़ते हैं ही क्यों कहीं
क्यों पूछते हर वो प्रश्न
जिनके उत्तर खुद उनके पास होते नहीं
जिनके उत्तर कहीं होते नहीं
- बिभूति रंजन पाणिग्राही
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