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    उठो बुड़बक

    Utho Budbak (उठो बुड़बक) a Hindi Poem  by Rajan Ranjan Rana for the Shubhapallaba Hindi Portal

    उठो धनुर्धर ! चाप धरो
    कुछ घात लगाकर बैठे हैं ।

    उठो ओ ! पलकें, ज्वार धरो
    देखो के कितने प्यासे हैं

    व्यर्थ बहे उनके खातिर
    रत्ती भर जिनको चिंता है
    बल्कि नैना ! वह ताल धरो
    जो फाड़ के पर्वत बहता है ।

    उठो झंझा लो, घोष करो
    क्यों त्रास दबाऐ बैठे हो
    उठो बुड़बक ! दरजा देखो
    तुच्छ आश लगाए बैठे हो ।

    - रजत रंजन रणा

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