चल जुदा होतेहैं
चल रहीहै समय की धार
ढल रहीहै शाम
कुछ अनकही बातें कहानी बंजायेगी
मुलाक़ातकी घड़ी यादेँ बंजायेगी
जिंदगी बदल जाएगी कुछ इस तरह
तुम उसपार खड़ी रहोगी....में इसपार....
आंखे तो नमी मेरी होगी
तुम्हे होगी सावन का इंतेज़ार
बरसती बादलकी काली रातोंमें
तकिया को गले लगाकर आँशु चुपके से पिओगे..
तब हम,
कुछ दर्द के बोझ लेकर
बिखरे जुल्फें और खाली बोतल के साहारे,
किसी मधुशाला में मिलेंगे..
तुम बहुत याद आओगी तब...
आज भी जैसे अति हो,
कल भी जैसे आयेथे
- तृप्ति रंजन दास
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