हर कोई अपना लगेगा
देख तु अपने ही भीतर
क्या कमी है
क्यों दूसरों में
खामियां टटोलता है
पहले तो तू सम्भल जा
स्वयं को देख मन दर्पन में
तु कितना स्वछ है ।
जग से छूपाने से लाभ क्या
तूझे तो ज्ञात है
तेरी क्या है छवि
तेरा कर्म ही तेरा परिचय उजागर करेगा
तेरा गुण तेरा स्वभाव दिखेगा
जो बीज बोएगा आज
कल उसका ही फल मिलेगा ।
घोर अन्धकार कि रजनी
चाहे कीतना काली क्यों न हो
सूर्य कि आभा से
भोर हो ही जाती है
सत्य को कितना ही ढकलो
असत्य के चादरों से
फिर भी सत्य तो सत्य ही रहेगा ।
जल में लवण भी घुलता है
ओर चीनी भी
अनुपात में कुछ अधिक लवण
स्वाद बिगाड़ जाता है
परन्तु चीनी मिठास बढा जाती है
तु धारा बनजा मिठास कि
तु साहारा बनजा प्यासा का
हर कोई अपना लगेंगे
तेरा मिठापन में
हर घडी हर क्षण ।
- कवि प्रसाद
सर्गिगुडा, मण्डल,
बेल पड़ा, बलांगिर, उड़िसा
मोबाइल - 7606051395








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