चाय की चुस्की
वो सोंधी सोंधी सी खुसबू
मिट्टी के कुल्हड़ से
बहत याद आती हे
जब भी हमे खुद को
जगाने का ख्याल आते है
चाय की प्यालो को हाथो से
उठा लेता हूं औऱ मन हल्का
करने का वही पुरानी तरक़ीब
फिर से आज़मा लेता हूं
जब दिन ठहर जाए दो राह पर
ये चाय ही तो हे जो
सही गलत चुनने में मदद की हे
अब अगर मन भी रूठ जाए
इन्ही रोज़ मर्रा की जिंदगी से
तो तुम्हारे हाथ की बनाई चाय की
वो वाली बात हा वही वाली बात
अकसर याद करलेता हु
हर वो सलाह मशवरा भी जो
तुम दिया करती थी
चाय की चुस्की के साथ साथ
ज़िंदगी को बेहतर बनाने की
बिस्किट डूबा के चाय पी
लेने की वो लत जो तुमने
लगाई थी वो आदत आज भी
मेरे करीब है , नजाने फिर क्यो
तनहाई ही मेरे नशीब है
आज भी दिन भर सताती वही बात
तुम चाय पिओगे क्या???
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