आग जलनी चाहिए
हो चुकी बोहत, अब ये मंजर बदलना चाहिए
सड़ चुकी समाज की बुनियाद हिलनी चाहिए ।
हर दिन , हर पल का जो डर ओ मिटना चाहिए
मैं और तुम से आगे हम बनना चाहिए ।
ये समाज और उसके रखवालों भी समझे
ये जो भस्मासुर है ओ भस्म होना चाहिए ।
यँहा बुझी हुई हर आग जलनी चाहिए,
सबका सोया हुआ जमीर आज जगना चाहिए ।
सिर्फ लो जलाना मेरा मकसद नहीँ,
मेरी कोशिश है की , ये मानसिकता बदलना चाहिए।
मेरे सीने से ना सही तेरे में ही सही
हो कँही भी आग, लेकिन ओ आग जलनी चहिए ।।
- सम्बित कर
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